मैं हूँ दर्द-ए-इश्क से जान वलब, मुझे जिंदगी की दुआ न दे
मेरे दाग-ए-दिल से है रोशनी, उसी रोशनी से है जिंदगी
मुझे डर है अए चारागर, ये चराग तू ही बुझा न दे
कभी जाम लब पे लगा दिया कभी मुस्कुराके हटा दिया
तेरे छेड़-छाड़ में साथिया, मेरी तशनगी को बढ़ा न दे
मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर, तेरा क्या भरोसा है चारागर
ये तेरी नवाजिश-ए-मुख्तसर, मेरा दर्द और बढ़ा न दे
मेरा अज़्म इतना बलंद है के पराये शोलों का डर नहीं
मुझे खौफ आतिशे गुल से है, ये कहीं चमन को जला न दे
वो उठे हैं लेके होम-ओ-सुब्बू, अरे ओ 'शकील' कहाँ है तू
तेरा जाम लेने को बज्म में कोई और हाथ बढ़ा न दे
-'शकील'
जब हुआ जि़क्र जमाने मे मुहब्बत का "शकील"
ReplyDeleteमुझको अपने दिले नाकाम पे रोना आया
Wah kyaa baat hai...
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