Friday, May 7, 2010

क्या टूटा है.... अन्दर अन्दर, क्यों चेहरा कुम्हलाया है
क्या टूटा है अन्दर अन्दर...क्यों चेहरा कुम्हलाया है
क्या टूटा है अन्दर अन्दर, क्यों चेहरा कुम्हलाया है
तनहा तनहा रोने वालो, कौन तुम्हे याद आया है...........
क्या टूटा है अन्दर अन्दर...क्यों चेहरा कुम्हलाया है
चुपके चुपके सुलगे रहे थे, याद में उनकी दीवाने..
एकतारे में टूट के यारो......
एकतारे में टूट के यारो....क्या उनके समझाया है
क्या टूटा है अन्दर अन्दर...क्यों चेहरा कुम्हलाया है

रंगबरंगी इस महफ़िल में...
रंगबरंगी इस महफ़िल में, तुम क्यों इतने चुपचुप हो
भूल भी जाओ पागल लोगो....
भूल भी जाओ पागल लोगो.... क्या खोया क्या पाया है.....
क्या टूटा है अन्दर अन्दर...क्यों चेहरा कुम्हलाया है

शेर कहा है खून है दिल का ....
शेर कहा है खून है दिल का, जो लफ्जों में बिखरा है
शेर कहा है खून है दिल का......जो लफ्जों में बिखरा है..
दिल के जख्म दिखा कर हमने
दिल के जख्म दिखा कर हमने..महफ़िल को गरमाया है..............
क्या टूटा है अन्दर अन्दर...क्यों चेहरा कुम्हलाया है

अब 'शहजाद' ये झूट ना बोलो
अब 'शहजाद' ये झूट ना बोलो... वो इतना बेदर्द नहीं
अब 'शहजाद' ये झूट ना बोलो, वो इतना बेदर्द नहीं
अपनी चाहत को भी परखो..
अपनी चाहत को भी परखो, गर इम्जाम लगाया है
क्या टूटा है अन्दर अन्दर...क्यों चेहरा कुम्हलाया है
तनहा तनहा रोने वालो ....
 तनहा तनहा रोने वालो, कौन तुम्हे याद आया है...
क्या टूटा है अन्दर अन्दर...क्यों चेहरा कुम्हलाया है


- शहजाद

Sunday, April 18, 2010

फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया
दिल जिगर तशना-ए-फ़रियाद आया

दम लिया था न क़यामत ने हनोज
फिर तेरा वक़्त-ए-सफ़र याद आया

जिंदगी यूँ भी गुजर ही जाती
क्यों तेरा राहगुजर याद आया

कोई वीरानी सी वीरानी है
दश्त को देख के घर याद आया

हमने मजनू पे लड़कपन में असद
संग उठाया था के सर याद आया

- 'असद' ग़ालिब

Sunday, March 28, 2010

जिंदगी में तो सभी..

जिंदगी में तो सभी प्यार किया करते है
मैं तो मर कर भी मेरी जाँ तुझे चाहूँगा

तू मिला है तो ये एहसास हुआ है मुझको
ये मेरी उम्र मोहबत के लिए थोड़ी है 
एक जरासा गम-ए-दौरा का भी हक है जिस पर
मैंने वो साँस भी तेरे लिए रख छोड़ी है
तुझपे हो जाऊ कुर्बान, तुझे चाहूँगा  
मैं तो मर कर मेरी जाँ तुझे चाहूँगा
जिंदगी में तो सभी प्यार किया करते है

अपने जज्बात नगमात रचाने के लिए
मैंने धड़कन की तरह दिल में बसाया है तुझे
मैं तसव्वुर भी जुदाई का भला कैसे करूँ
मैंने किस्मत की लकीरों से चुराया है तुझे
प्यार का बनके निगहबान तुझे चाहूँगा 
मैं तो मर कर मेरी जाँ तुझे चाहूँगा
जिंदगी में तो सभी प्यार किया करते है

तेरी हर चाप से जलते हैं ख्यालों में चिराग
जब भी तू आये जगाता हुआ जादू आये
तुझको छू लूं तो फिर ऐ जाँ ए तमन्ना मुझको
देर तक अपने बदन से तेरी खुशबु आये
तू बहारों का है उनवान तुझे चाहूँगा 

मैं तो मर कर मेरी जाँ तुझे चाहूँगा
जिंदगी में तो सभी प्यार किया करते है

Sunday, March 7, 2010



कोई दोस्त है ना रकीब है
तेरा शहर कितना अजीब है

वो जो इश्क था वो जूनून था
ये जो हिज्र है ये नसीब है

यहाँ किसका चेहरा पढ़ा करूँ
यहाँ कौन इतना करीब है


मैं किसे कहूँ मेरे साथ चल
यहाँ सबके सर पे सलीब है

तुझे देखकर मैं हूँ सोचता
तू हबीब है या रकीब है

- राना साहरी  

Friday, March 5, 2010

तेरे आने का धोखा सा रहा है
दिया सा रात भर जलता रहा है

अजब है रात से आँखों का आलम
ये दरिया रात भर चढ़ता रहा है

सुना है रात भर बरसा है बादल
मगर वो शहर जो प्यासा रहा है

वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का
जो पिछली रात से याद आ रहा है

किसे ढून्दोगे इन गलियों में 'नासिर'
चलो अब घर चले दिन जा रहा है

- नासिर

Sunday, February 28, 2010

प्यार भरे दो शर्मीले नैन... जिनसे मिला मेरे दिल को चैन
कोई जाने ना... क्यूँ मुझसे शरमाए... कैसे मुझे तडपाए...

प्यार भरे दो शर्मीले नैन...

दिल ये कहे गीत मैं तेरे गाऊ.. तू ही सुने और मैं गाता जाऊ..
तू जो रहे साथ मेरे ..दुनिया को ठुकराऊ.. तेरा दिल बहलाऊ..

प्यार भरे दो शर्मीले नैन...

रूप तेरा कलियों को शरमाए.. कैसे कोई अपने दिल को बचाए..
पास है तू ..फिर भी जलूँ कौन तुझे समझाए..सावन बीता जाए..

प्यार भरे दो शर्मीले नैन...

डर है मुझे तुझसे बिछड़ ना जाऊ..खो के तुझे मिलने की राह न पाऊ..
ऐसा ना हो ..जब भी तेरा ...नाम लबों पर लाऊ.. मैं आंसू बन जाऊ.. 

प्यार भरे दो शर्मीले नैन...जिनसे मिला मेरे दिल को चैन
कोई जाने ना... क्यूँ मुझसे शरमाए... कैसे मुझे तडपाए...


प्यार भरे दो शर्मीले नैन...


Thursday, February 11, 2010

जब तेरे दर्द में..
दिल दुखता था...
हम तेरे हक़ में दुआ करते थे
हम भी चुपचाप पिया करते थे

जब तेरे दर्द में..
जिया करते थे
जब तेरे दर्द में..
जिया करते थे





Sunday, January 31, 2010

आबिदा परवीन

रंग बातें करें और बातों से खुशबू आए
दर्द फूलों की तरह महके अगर तू आए

भीग जाती है इस उमीद पे आँखें हर शाम
शायद से रात हो महताब लबेजू आए

हम तेरी याद से कतरा के गुजर जाते मगर
राह में फूलों के लब सायों के गेसू आए

आजमाए इश्क की घडी से गुजर आए तो जिया
जशन-ए-गमदारी हुआ आँख में आंसू आए


Tuesday, January 26, 2010

ग़ालिब

रहिये  अब  ऐसी  जगह  चलकर  जहाँ  कोई  न  हो 
हमसुखन  कोई  न  हो  और  हमज़बाँ  कोई  न  हो 

बेदार -ओ -दीवार  सा  इक  घर  बनाया  चाहिए 
कोई  हमसाया  न  हो  और  पासबाँ  कोई  न  हो 

पड़िए  गर  बीमार  तो  कोई  न  हो  तीमार -दार 
और  अगर  मर  जाइए  तो , नौहा -ख्वाँ  कोई  न  हो 

- ग़ालिब

Saturday, January 9, 2010

एक बस तू ही नहीं मुझसे खफ़ा हो बैठा


एक बस तू ही नहीं मुझसे खफ़ा हो बैठा
मैंने जो संग तराशा वो खुदा हो बैठा

उठ के मंजिल ही अगर आये तो शायद कुछ हो
शौक-ए-मंजिल तो मेरा आबलापा हो बैठा

मस्लहत छीन गयी कुवत-ए-गुफ्तार मगर
कुछ न कहना ही मेरा मेरी सदा हो बैठा

शुक्रिया ऐ मेरे कातिल ऐ मसीहा मेरे
जहर जो तुने दिया था वो दवा हो बैठा

जाने 'शहजाद' को मिनजुम्ला ए आदा पा कर
हुक वो उठी के जी तन से जुदा हो बैठा



- फरहत शहजाद


मराठी अनुरूप 


एक फक्त तूच नाही माझ्याशी नाराज होऊन बसला
मी जो दगड कोरला तो देव होऊन बसला

उठून ध्येयच जर आले तर कदाचित काही घटेल
वांच्छित उद्देश तर माझा अपंग होऊन बसला

हितगुज निसटुन गेली बातचीतची करामत परंतु
काही न बोलण ही माझं, माझा आवाज होऊन बसला

उपकृत ए माझ्या मारका ए संजीवका माझ्या
विष-अग्नी जो तू दिला होता तो जल-अमृत होऊन बसला

'शहजाद' च्या जीवाला एकूण-एक सर्व शत्रू मिळवून
वेदना जी उठली की जीव शरीराहून विभक्त होऊन बसला


- फरहत शहजाद

Thursday, January 7, 2010

फैज़

गुल  हुई  जाती  है  अफसुर्दा  सुलगती  हुई  शाम
गुल  हुई  जाती  है  अफसुर्दा  सुलगती  हुई  शाम
धुल  के  निकलेगी  अभी  चश्म  ए  महताब  से  रात
गुल  हुई  जाती  है  अफसुर्दा  सुलगती  हुई  शाम
गुल  हुई  जाती  है ....
गुल  हुई  जाती  है  अफसुर्दा  सुलगती  हुई  शाम
और  मुश्ताक  निगाहों  की  सुनी  जाएगी
और  मुश्ताक  निगाहों  की  सुनी  जाएगी
और  उन  हाथों  से  मस  होंगे  ये  तरसे  हुए  हाथ
गुल  हुई  जाती  है  अफसुर्दा  सुलगती  हुई  शाम
गुल  हुई  जाती  है....
उनका  आँचल  है  के  रुखसार  के  पैराहन  है
उनका  आँचल  है  के  रुखसार  के  पैराहन  है
कुछ  तो  है  जिस  से  हुई  जाती  है  चिलमन  रंगीन
जाने  उस  ज़ुल्फ़  की  मौहूम  घनी  छावओं  में
टिमटिमाता  है  वो  आवेज़ा  अभी  तक  के  नहीं
गुल  हुई  जाती  है  अफसुर्दा  सुलगती  हुई  शाम
गुल  हुई  जाती  है....
आज  फिर  हुस्न  ए  दिलारा  की  वही  धज  होगी
आज  फिर  हुस्न  ए  दिलारा  की  वही  धज  होगी
वोही  ख्वाबीदा  सी  आँखें  वोही  काजल  की  लकीर
रंग  ए रुखसार  पे  हल्का  सा  वो   गाजे   का  गुबार 
संदली  हाथ  पे  धुंधली  सी  हिना  की  तहरीर
अपने  अफ़्कार  की  अशआर  की  दुनिया  है  यही
जाने  मज़मून  है  यही  शाहिदे  माना  है  यही
अपना  मौजू -ए -सुखन  इनके  सिवा  और  नहीं
तब्बा  शायर  का  वतन  इनके  सिवा  और  नहीं
यह  खूँ  की  महक  है  के  लबे  यार  की  खुशबू
यह  खूँ  की  महक  है....
यह  खूँ  की  महक  है  के  लबे  यार  की  खुशबू
किस  राह  की  - जानिब  से  सबा  आती  है  देखो
गुलशन  में  बहार  आई.... 
गुलशन  में  बहार आई  के  जिंदा  हुआ  आबाद
किस  संद  से  नगमों  की  सदा  आती  है  देखो
गुल  हुई  जाती  है  अफसुर्दा  सुलगती  हुई  शाम
गुल  हुई  जाती  है  अफसुर्दा  सुलगती  हुई  शाम
धुल  के  निकलेगी  अभी  चश्म  ए  महताब  से  रात
गुल  हुई  जाती  है  अफसुर्दा  सुलगती  हुई  शाम
गुल  हुई  जाती  है.....

- फैज़


Tuesday, January 5, 2010

आँखों को इंतज़ार का

आँखों को इंतज़ार का, दे के हुनर चला गया
चाहा था एक शख्स को, जाने किधर चला गया

दिनकी वो महफिलें गयी, रातों के रत जगें गए
कोई समेट कर मेरे, शामो सहर चला गया

झोंका है एक बहार का, रंग-ए-ख्याल-ए-यार भी
हरसू बिखर बिखर गयी खुशबू, जिधर चला गया

उसके ही दम से दिल में आज, धुप भी चांदनी भी है
दे के वो अपनी याद के, शम्सो क़मर चला गया

कूचा-ब-कूचा दर-ब-दर, कब से भटक रहा है दिल
हमको भुला के राह वो, अपनी डगर चला गया


Monday, January 4, 2010

यूँ जिंदगी की राहों में....

यूँ... जिंदगी की राहों में टकरा गया कोई
यूँ जिंदगी की राहों में टकरा गया कोई
यूँ जिंदगी की राहों में....
इक रोशनी अंधेरों में बिखरा गया कोई
यूँ जिंदगी की राहों में टकरा गया कोई
यूँ जिंदगी की राहों में....

वो हादसा वो पहली मुलाक़ात क्या कहूँ, कितनी अजब थी सूरते हालात क्या कहूँ
वो कहर वो गज़ब वो जफा मुझको याद है,
वो उसकी बेरुखी की अदा मुझको याद है,
मिटता नहीं  है जहेन से यूँ छा गया कोई..
यूँ जिंदगी की राहों में टकरा गया कोई..
यूँ जिंदगी की राहों में....

पहले वो मुझको देखकर बरहम सी हो गई,
पहले..वो मुझको देखकर बरहम सी हो गई, फिर अपने ही नसीब खयालों में खो गई
बेचारगी पे मेरे उसे रहम आ गया,
शायद मेरे तड़पने का अंदाज भा गया,
सांसों से भी करीब मेरे आ गया कोई...
यूँ जिंदगी की राहों में टकरा गया कोई..
यूँ जिंदगी की राहों में....

अब उस गिले तबाह की हालत ना पूछिये,
अब उस गिले तबाह की हालत ना पूछिये, बेनाम आरजू की लजत ना पूछिये
इक अजनबी था रूह का अरमान बन गया,
इक हादसा था प्यार का उनवान बन गया,
मंजिल का रास्ता मुझे दिखला गया कोई...
यूँ जिंदगी की राहों में टकरा गया कोई..
यूँ जिंदगी की राहों में....

इक रोशनी अंधेरों में बिखरा गया कोई
यूँ जिंदगी की राहों में टकरा गया कोई


यूँ जिंदगी की राहों में....

कैसर

मेरी  आँखों  को  आँखों  का  किनारा  कौन  दे  गा
समंदर  को  समंदर  में  सहारा  कौन  दे  गा

मेरे  चेहरे  को  चेहरा  कब  इनायत  कर  रहे  हो
तुम्हें  मेरे  सिवा  चेहरा  तुम्हारा  कौन  दे  गा

मुहब्बत  नीला  मौसम  बन  के  आ  जाएगी  इक  दिन
गुलाबी  तितलियों  को  फिर  सहारा  कौन  दे  गा

 
मेरी  आवाज़  में  आवाज़  किस  क़ी  बोलती  है
मेरे  गीतों  को  गीतों  का  किनारा  कौन  दे  गा 




बदन  में  एक  सहरा  जल  रहा  है  बुझ  रहा  है
मेरे  दरयाओं  को  'कैसर'  इशारा  कौन  दे  गा


 - कैसर

Sunday, January 3, 2010

यह जफ़ा-ए-गम

यह जफ़ा-ए-गम का चारा
वोह नजाते दिल का आलम
तेरा हुस्न दस्त-ए-ईसा
तेरी याद रूह-ए-मरियम

दिलों जाँ फ़िदा-ए-राहें
कभी आके देख हमदम
सरकुए दिलफिगारा
शब-ए-आरजू का आलम

यह जफ़ा-ए-गम का चारा.....

तेरी दीद से सिवा हैं
तेरे शौक में बहाराँ
वो चमन जहाँ गिरी है
तेरे गेसूओं की शबनम

यह जफ़ा-ए-गम का चारा ...

लो सुनी गई हमारी
यूँ फिरे है दिल के फिरसे
वोही गोशा ए कफस है
वोही फस्ले गुल का मातम  

यह जफ़ा-ए-गम का चारा....

ये अजब कयामतें है
तेरी राहगुजर में गुजरा
न हुआ के मर मिटे हम
ना हुआ के जी उठे हम

यह जफ़ा-ए-गम का चारा...

- फैज़ अहमद फैज़

 

Saturday, January 2, 2010

कटे नाहि रातें मोरी... पिया तोरे कारन कारन.... पिया तोरे कारन कारन
कटे नाहि रातें मोरी..... पिया तोरे कारन कारन ....
.....पिया तोरे कारन कारन...

कालें कालें बादल छायें... देखि देखि जी ललचाये ....
कालें कालें बादल छायें....  देखि देखि जी ललचाये .... कैसे आऊ पास तिहारे ... दुरी गए मोरे साजन
कैसे आऊ पास तिहारे ... दुरी गए मोरे साजन.....
......दुरी गए मोरे साजन...

कटे नाहि रातें मोरी..... पिया तोरे कारन कारन .... पिया तोरे कारन कारन

भीगा भीगा मौसम आया .... पिया का संदेसा लाया...
भीगा भीगा मौसम आया .... पिया का संदेसा लाया...मनिवा को चैन न आवैं ... तरसें है मोरे नैना 
मनिवा को चैन न आवैं ... तरसें है मोरे नैना 
... तरसें है मोरे नैना  .........

कटे नाहि रातें मोरी..... पिया तोरे कारन कारन .... पिया तोरे कारन कारन

कटे नाहि रातें मोरी... पिया तोरे कारन कारन.... पिया तोरे कारन कारन
.. पिया तोरे कारन कारन ....
.....पिया तोरे कारन कारन...

Tuesday, December 29, 2009

हिजाब को..

हिजाब  को..
हिजाब  को  बेनकाब  होना  था.... 
हिजाब  को  बेनकाब  होना  था
हाँ  मुझी  को...
मुझी  को...
हाँ  मुझी  को  ख़राब  होना  था
हिजाब  को  बेनकाब  होना  था , हिजाब  को ...

खेली  बचपन  में  आँख  मचोली  बहोत  
खेली  बचपन  में  आँख  मचोली  बहोत....
खेली  बचपन  में  आँख  मचोली  बहोत
आया  शबाब...
आया  शबाब  तो  हिसाब  होना  था 
हिजाब  को  बेनकाब  होना  था , हिजाब  को ...

साथ  रहते  हैं  रात  दिन  की  तरह
साथ  रहते  हैं  रात  दिन  की  तरह
साथ  रहते  हैं  रात  दिन  की  तरह.....
तुम  हो  माहताब...
तुम  हो  माहताब  मुझे  आफताब  होना  था 
हिजाब  को  बेनकाब  होना  था , हिजाब  को ...

मेरी  आँखों  का  कुछ  क़ुसूर  नहीं
मेरी  आँखों  का  कुछ  क़ुसूर  नहीं
मेरी  आँखों  का  कुछ  क़ुसूर  नहीं
हुस्न  को...
हुस्न  को  लाज़वाब  होना  था 
हिजाब  को  बेनकाब  होना  था , हिजाब  को ...

था  मुक़द्दर  में  हमारा  मिलना 
था..था  मुक़द्दर  में  हमारा  मिलना...
था  मुक़द्दर  में  हमारा  मिलना..
वगरना  हममें...
वगरना  हममें  कहाँ  कामयाब  होना  था
हिजाब  को  बेनकाब  होना  था ,
हिजाब  को  बेनकाब  होना  था , हिजाब  को ...

हिजाब  को  बेनकाब  होना  था
हाँ  मुझी  को  ख़राब  होना  था
हिजाब  को  बेनकाब  होना  था , हिजाब  को ...

Monday, December 28, 2009

बात करनी मुझे मुश्किल

बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
जैसे अब है तेरी महफ़िल, कभी ऐसी तो न थी

ले गया छीन के कौन आज तेरा सब्रो-करार
बेकरारी तुझे ऐ दिल, कभी ऐसी तो न थी

उनकी आँखों ने खुदा जाने किया क्या जादू
के तबीअत मेरी माइल, कभी ऐसी
तो न थी

चश्मे-कातिल मेरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन
जैसे अब हो गई कातिल, कभी ऐसी
तो न थी

क्या सबब तू जो बिगड़ता है 'ज़फर' से हर बार
ख़ु तेरी हुरश्माइल, कभी ऐसी
तो न थी

- बहादुरशाह ज़फर




Sunday, December 27, 2009

कैसे छुपाऊं..

कैसे छुपाऊं राजे-गम, दीदा-ए-तर को क्या करूँ
दिल की तपिश को क्या करूँ, सोजे-जिगर को क्या करूँ

शोरिशे-आशिक़ी कहाँ, और मेरी सादगी कहाँ
हुस्न को तेरे क्या कहूँ, अपनी नज़र को क्या करूँ

ग़म का न दिल में हो गुज़र, वस्ल की शब हो यूँ बसर
सब ये क़ुबूल है मगर, खौफे-सहर को क्या करूँ

हाल मेरा था जब बतर, तब न हुई तुम्हें खबर
बाद मेरे हुआ असर, अब मैं असर को क्या करूँ

- हसरत मोहानी



Monday, December 21, 2009

खामोश हो क्यों


खामोश हो क्यूँ दाद-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते
बिस्मिल हो तो कातिल को दुआ क्यूँ नहीं देते

वहशत का सबब रौजने-ज़िंदा तो नहीं है
मेहरो-महो-अंजुम को बुझा क्यूँ नहीं देते

एक यह भी तो अंदाजे-इलाजे-गमे-जाँ है
ये चारागरो दर्द बढ़ा क्यूँ नहीं देते

रहजन हो हाजिर है मताए-दिलो-जाँ भी
रहबर हो तो मंजिल का पता क्यूँ नहीं देते

मुंसिफ हो अगर तुम तो कब इंसाफ़ करोगे
मुजरिम हैं अगर हम तो सज़ा क्यूँ नहीं देते

साये हैं अगर हम तो हो क्यों हमसे गुरेजाँ
दीवार अगर हैं तो गिरा क्यूँ नहीं देते

क्या बीत गयी अबके 'फ़राज़' अहले चमन पर
याद आने का कफस मुझको सदा क्यूँ नहीं देते

- अहमद फ़राज़

Sunday, December 20, 2009

फैज़

हमके ठहरे अजनबी कितनी मुलाकातों के बाद

फिर बनेंगे आशना कितनी मुलाकातों के बाद

कब नज़र में आएगी बेदाग़ सब्जे की बहार

खून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बाद

थे बहोत बेदर्द लम्हें ख़त्म-ए-दर्द-ए-इश्क के

थी बहोत बे-मेहर सुबहें मेहरबान रातों के बाद

उनसे जो कहने गए थे 'फैज़' जा सदका किये

अनकही ही रह गयी वोह बात सब बातों के बाद
 
- फैज़ अहमद फैज़

यह कौन आता है तनहाईओ में..

यह कौन आता है तनहाईओ में जाम लिए
दिलोंमे चांदनी रातोंका एहतमाम लिए

चटक रही है किसी याद की कली दिलमें
नजर में रख्श-बहारांओ की सुबह-ओ-शाम लिए

महक महक के जगाती रही नसीमे सहर
लबोंपे यार मसीहा नफ़ज़ का नाम लिए
 
किसी ख्याल की खुशबू किसी बदन की महक
दरे कफस के खड़ी है सबा पयाम लिए

बजा रहा था कहीं दूर कोई शहनाई
उठा हूँ आंखोंमे एक ख्वाब नातमाम लिए

- मखदूम मोहिउद्दीन


Friday, December 18, 2009

इब्न-ए-मरियम हुआ करे कोई
मेरे दुख की दवा करे कोई

शर-ओ-आइन पर मदार सही
ऐसे क़ातिल का क्या करे कोई

चाल जैसे कड़ी कमाँ का तीर
दिल में ऐसे के जा करे कोई

बात पर वाँ जबाँ कटती है
वो कहें और सुना करे कोई

बक रहा हूँ जुनूँ में क्या क्या
कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई

न सुनो गर बुरा कहे कोई
न कहो गर बुरा करे कोई

रोक लो गर गलत चले कोई
बख्श दो गर ख़ता करे कोई

कौन है जो नही है हाजतमंद
किसकी हाजतरवा करे कोई

क्या किया ख़िज्र ने सिकंदर से
अब किसे रहनुमा करे कोई

जब तवक्को ही उठ गई 'ग़ालिब'
क्यों किसी का गिला करे कोई

-ग़ालिब

मराठी अनुरूप

पुत्र मेरीचा होऊन करे कोणी 
माझ्या दुःखाचा उपाय करे कोणी

वाईटांचा कायदा वर अवलंब खरा
अश्या खुनीचे काय करे कोणी

चाल जशी ताणलेल्या धनुष्याचा बाण
हृदयात असा कि जाई करे कोणी

बोलल्यावर जीभ कापत आहे
ते सांगे आणि ऐकण करे कोणी

रटत राहत आहे वेड्यात काय काय
काही न समजो देवा! करे कोणी

न ऐको जर वाईट बोले कोणी
न बोलो जर वाईट करे कोणी

रोधून घ्या जर चुकीच चाले कोणी
क्षमा द्या जर अपराध करे कोणी

कोण आहे जो नाही आहे इच्छुक
कोणाची इच्छापूर्ती करे कोणी

काय केले खिज्रने सिकांदारास
आता कशास पथदर्शक करे कोणी

जेव्हा आशा ही उडून गेली 'गालिब'
का कोणाचा शोक करे कोणी

-गालिब


दिल-ए-नादाँ

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
आखिर इस दर्द की दवा क्या है

हम हैं मुश्ताक़ और वो बेज़ार
या इलाही ये माजरा क्या है

मैं भी मुँह में जुबान रखता हूँ
काश पूछो क़ि मुद्दआ क्या है

जब क़ि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद
फिर ये हंगामा-ए-खुदा क्या है

ये परीचेहरा लोग कैसे हैं
गम्जा-ओ-इशवा-ओ-अदा क्या है

शिकन-ए-जुल्फ अंबरी क्यों है
निगह-ए-चश्म-ए-सुरमा सा क्या है

सब्जा-ओ-गुल कहाँ से आये हैं
अब्र क्या चीज है हवा क्या है

हमको उनसे वफ़ा क़ी है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है

हाँ भला कर तेरा भला होगा
और दरवेश क़ी सदा क्या है

जान तुम पर निसार करता हूँ
मैं नहीं जानता दुआ क्या है

मैंने माना के कुछ नही ग़ालिब
मुफ़्त हाथ आए तो बुरा क्या है

-ग़ालिब

Thursday, December 17, 2009


इश्क में गैरते-ज़ज्बात ने रोने न दिया
वरना क्या बात थी जिस बात ने रोने न दिया

आप कहते थे के रोने से न बदलेंगे नसीब
उम्र भर आप के इस बात ने रोने न दिया

रोने वालों से कहो उनका भी रोना रो लें
जिनको मज़बूरी-ए-हालात ने रोने न दिया

तुझसे मिलकर हमें रोना था, बहुत रोना था
तंगी-ए-वक़्त-ए-मुलाक़ात ने रोने न दिया

एक दो रोज का रोना हो तो रो लें 'फ़ाकिर'
हमको हर रोज के सदमात ने रोने न दिया

- सुदर्शन फ़ाकिर

Sunday, December 13, 2009

यूँ सजा चाँद



यूँ सजा चाँद के छलका तेरे अंदाज का रंग
यूँ फिज़ा महकी के बदला मेरे हमराज का रंग

साया-ए-चश्म में हैरां रुख-ए-रोशन का जमाल
सुर्खि-ए-लब में परीशां तेरी आवाज का रंग

बे पिए हूँ के अगर लुत्फ़ करो आखिर-ए-शब
शीशा-ओ-मय में ढलें सुबह के आगाज का रंग

चंग-ओ-नै, रंग पे थे अपने लहू के दम से
दिल ने लय बदली तो मद्धम हुआ हर साज का रंग

- फैज़ अहमद फैज़

नासिर

दिल धड़कने का सबब याद आया
वो तेरी याद थी, अब याद आया

आज मुश्किल था संभलना ए दोस्त
तू मुसीबत में अजब याद आया

हाले-दिल हम भी सुनाते लेकिन
जब वो रुख्सत हुए, तब याद आया

 
दिन गुजारा था बड़ी मुश्किल से
फिर तेरा वादा-ए-शब याद आया

बैठ कर साया-ए-गुल में 'नासिर'
हम बहुत रोये, वो जब याद आया

- नासिर

पत्ता पत्ता शबनम शबनम ....

पत्ता पत्ता शबनम शबनम मौसम भीगी आँखोका
गुलशन गुलशन एकही मौसम
मौसम भीगी आँखोका

आँखोसे कुछ तारे टूटे किस्मत चमकी दामन की
आज हुआ जायज और का मौसम
मौसम भीगी आँखोका

अब के बरस भी तनहाई के बादल अपने सर पर हैं
अब के बरस भी देखेंगे हम
मौसम भीगी आँखोका

भीगी आँखोके मौसम का इतना ही अफसाना हैं
फूलोंके खिलने का मौसम
मौसम भीगी आँखोका

और 'निजाम' अब घरसे निकले वीरान-ए-आबाद करें
वरना होगा हमसे बरहम
मौसम भीगी आँखोका 

- निजाम

Sunday, December 6, 2009

रोना आया


ए मोहबत तेरे अंज़ाम पे रोना आया
जाने क्यूँ आज तेरे नाम पे रोना आया


यूँ तो हर शाम उमीदों पे गुजर जाती थी
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया


कभी तक़दीर का मातम, कभी दुनिया का गिला
मंज़िल-ए-इश्क में हर गाम पे रोना आया


मुझपे ही ख़त्म हुआ सिलसिला-ए-नौहागरी
इस कदर गर्दिश-ए-अय्याम पे रोना आया


जब हुआ जिक्र ज़माने में मोहबत का 'शकील'
मुझको अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया


-शकील

आतिश

यह आरजू थी तुझे गुलके रूबरू करते
हम और बुलबुल-ए-बेताब गुफ्तगू करते

पयाम-बर ना मयस्सर हुआ तो खूब हुआ
जबान ए गैर से क्या शरह ए आरजू करते

मेरी तरह से माह ओ मेहर भी है आवारा
किसी हबीब की यह भी है जुस्तजू करते

जो देखते तेरी जंजीर ए जुल्फ का आलम
असीर होने की आजाद आरजू करते

वो जान ए जाँ नहीं आता तो मौत ही आती
दिल ओ जिगर को कहाँ तक लहू करते

ना पूछ आलम ए बरगश्ता तालिए 'आतिश'
बरसती आग जो बाराँ की आरजू करते  

- हैदर अली आतिश







मराठी रुपांतर



ही इच्छा होती तुला फुलांशी परिचित करावी
मी आणि व्याकुळ पक्ष्याशी बातचीत करावी


संदेशदूत नाही उपलब्ध झाला तर चांगले झाले
परक्या बोलीतून टीकेची इच्छा अपेक्षित करावी


माझ्याप्रमाणे चंद्र-सूर्य पण आहे मनसोक्त
कुणी मित्राचा असा अजून आहे संशोधित करावी


जो बघतो तुझ्या केसांच्या बंधनांची अवस्था
कैद होण्याची मुक्तता अपेक्षित करावी 


ते जीव जिवलग नाही आले तर मरण ही आले
हृदय काळीजाला कुठवर रक्तरंजित करावी


नको विचारू प्रतिकूल परिस्थिती धगधगत्या 'आतिश'
बरसते आग जी पावसाची अपेक्षित करावी


- हैदर अली आतिश

Saturday, December 5, 2009

होरी होये रही है


होरी होये रही है
अहमद जीयो के द्वार 
हज़रत अली का रंग बना है
हसन हुसैन खिलार
ऐय्सो होरी की धूम मची है 
चहुँ और पड़ी है पुकार
ऐय्सो अनोखो चतुर
खिलाडी
रंग दिनयों संसार
निअज़ प्यारा भर भर  छिडके
एक ही रंग सस पिचकार

जी चाहे  तो  शीशा  बन  जा , जी  चाहे  पैमाना  बन  जा
शीशा  पैमाना  क्या  बनना , मय  बन  जा  मयखाना  बन  जा ..

मय  बन  कर , मयखाना  बन  कर  मस्ती  का  अफसाना  बन  जा
मस्ती  का  अफसाना  बनकर  हस्ती  से  बेगाना  बन  जा

हस्ती  से बेगाना  होना  मस्ती  का  अफसाना  बनना
इस  होने  से  इस  बनने  से  अच्छा  है  दीवाना  बन  जा

दीवाना बन  जाने  से  दीवाना  होना  अच्छा  है
दीवाना  होने  से  अच्छा  खाक -ऐ -दर -ऐ -जानाना  बन  जा

खाक -ऐ  -दर -ऐ  -जानाना  क्या  है  अहले  दिल  की  आँखों   का  सुरमा
शमा  के  दिल  की  ठंडक  बन  जा  नूर -ऐ -दिल -ऐ -परवाना  बन  जा

सीख  ज़हीन  के  दिल  से  जलना  काहे  को  हर  शम्मा  पर  जलना
अपनी  आग  में   खुद  जल  जाये  तू  ऐसा  परवाना  बन  जा

- हज़रत  शाह  नियाज़  
http://www.radioreloaded.com/tracks/?22554
मनम अन नियाझ मंदी के बे तू नियाझ दारम
ग़मे चूं तो नाझनीनी बेह्झार नाझ दारम
तुई ही आफताब ऐ चश्मम बा जमाल तुस्त रोशन
अगर अझ तो बाझगीरम बाके चश्मे बाझ दारम
- रूमी
( हात पसरून तुझ्याकडे एक देणं मागतो आहे मी, तू दे एक वेदना, ती आहे मला हज़ार लेण्यांसारखी... तूच आहेस सूर्य माझा, माझी नजर प्रकाशलेली तेजाने तुझ्या.....जर मी नजर दूर फिरवली तुझ्यापासून, तर कोणाला परत पाहू मी?)
यार को हमने जा-ब-जा देखा
कही जाहिर कही छुपा देखा
कही मुमकिन हुआ कही वाजिब
कही फानी कही वफ़ा देखा
कही वो बादशाह-ए-तख़्तनशीन
कही कासा लिए गदा देखा
कही वो दर-लिबास-ए-माशुका
बर सरे नाझ और अदा देखा
कही आशिक नियाझ की सूरत
सीना बरियान-ओ-दिलजला देखा
- हजरत शाह नियाज़

Wednesday, December 2, 2009

साकियाँ जाए कहाँ हम तेरे मयखाने से
शहर के शहर नजर आते है वीराने से...
ये जो कुछ लोग नजर आते है दीवाने से
इनको मतलब है न साकी से न पैमाने से...
जोड़ कर हाथ ये साकी है गुजारिश मेरी
मुझको आखों से पिला, गैर को पैमाने से...
मुझको आते हुए तो नासिर सबने देखा,
देखा जाते हुए न किसीने मुझे मयखाने से....
( शायर- हकीम नासिर)

सूना है लोग


सूना  है  लोग  उसे  आँख  भर  के  देखते  हैं 
सो  उस  के  शहर  में  कुछ  दिन  ठहर  के  देखते  हैं 

सूना  है  बोल  तो  बातों  से  फूल  झरते  हैं 
ये  बात  है  तो  चलो  बात  कर  के  देखते  हैं 

सूना  है  रात  उसे  चाँद  तकता  रहता  है 
सितारे  बाम -ए -फलक  से  उतर  के  देखते  हैं 

सूना  है  दिन  को  उसे  तितलियाँ  सताती  हैं 
सूना  है  रात  को  जुगनू  ठहर  के  देखते  हैं 

सूना  है  रब्त  है  उसको  खराब  हालों  से 
सो  अपने  आप  को  बर्बाद  करके  देखते  हैं 

सूना  है  दर्द  की  ग़ाहक  है  चश्म -ए -नाज़  उसकी 
सो  हम  भी  उसकी  गली  से  गुज़र  कर  देखते  हैं 

अब  उसके  शहर  में  ठहरें  के  कुछ  कर  जाएँ
"फ़राज़" आओ  सितारे  सफ़र  के  देखते  हैं

-अहमद फ़राज़

असद

आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक

आशकी सब्र तलब और तमन्ना बेताब
दिलका क्या रंग करूँ खून-ए-जिगर होने तक

हमने माना के तगाफुल ना करोगे लेकिन
खाक हो जायेंगे हम तुमको खबर होने तक


फर्तब ए खुर से शबनम को फ़ना की तालीम
मैं भी हूँ एक इनायत की नजर होने तक

गम ए हस्ती का 'सद' किससे हो जुज्मर्ग इलाज
शम्मा हर रंग जलती है सहर होने तक

- असद ग़ालिब



http://www.youtube.com/watch?v=ih6BTkJ1Ujc&feature=related
http://www.youtube.com/watch?v=pOUktERIIZo
http://www.youtube.com/watch?v=wLhUuLmtl4A

Sunday, November 29, 2009

काश....

काश ऐसा कोई मंजर होता..
काश ऐसा कोई मंजर होता..
मेरे काँधे पे तेरा सर होता...
काश ऐसा कोई मंजर होता..
मेरे काँधे पे तेरा सर होता..
काश ऐसा कोई मंजर होता..

जमा करता जो मैं आये हुए संग
जमा करता जो मैं आये हुए संग
सर छुपाने के लिए घर होता..
सर छुपाने के लिए घर होता..
मेरे काँधे पे तेरा सर होता...
काश ऐसा कोई मंजर होता..

इस बलंदी पे बहोत तनहा हूँ
तनहा हूँ
बहोत तनहा
तनहा तनहा 
इस बलंदी पे बहोत तनहा हूँ
काश मैं सब के बराबर होता..
काश मैं सब के बराबर होता..
मेरे काँधे पे तेरा सर होता...
काश ऐसा कोई मंजर होता..


उसने उलझा दिया दुनिया में मुझे
उसने उलझा दिया दुनिया में मुझे
वरना इक और कलंदर होता..
वरना इक और कलंदर होता..
मेरे काँधे पे तेरा सर होता...
काश ऐसा कोई मंजर होता..


मेरे काँधे पे तेरा सर होता...
काश ऐसा कोई मंजर होता..
काश....

Wednesday, November 25, 2009

खुसरौ


जिहाल  -ए  मिस्कीं  मकुन  तगफुल,
दुराये नैना बनाये बतियाँ
की  ताब  -ए  हिज्राँ  नदारम  ए  जाँ ,
न ले हो काहे लगाये छतियाँ

चो  शमा  सोज़ान  चो  ज़र्रा  हैरान,
हमेशा  गिरियाँ  बे  इश्क  आन  मह
न नींद नैना न अंग चैना
न आप ही आवें न भेजें पतियाँ

 
यकायक  अज  दिल  बसद  फरेबम 
 बबुर्द  चशमश  -ए  करार्र  तस्कीं 


किसे पड़ी है जो जा सुनावे
पियारे पी को हमारी बतियाँ

शबान  -ए  हिज्राँ  दराज़  चुन  ज़ुल्फ़
व  रोज़  -ए  वसलत  चो  उम्र  कोताह
सखी पिया को जो मैं न देखूं
तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ

बहक्क  -ए   रोज़  -ए  विसाल  -ए  दिलबर
की  दाद  मरा  ग़रीब  खुसरौ
सपत मन के वराए राखूँ
जो जाए पाऊँ पिया के खतियाँ 


Sunday, November 22, 2009

नजीर अकबराबादी

जब फागुन रंग झमकते हो
तब देख बहारें होली की.. तब देख बहारें होली की...
जब फागुन रंग झमकते....
परियों के रंग दमकते हो
खुम शीशे जाम छलकते हो
मेहबूब नशे में छकते हो
जब फागुन रंग झमकते हो.. जब फागुन रंग झमकते हो...

नाच रंगीली परियोंका
कुछ भीगी तानें होली की
कुछ तबले खड़के रंग भरें
कुछ घूंगरुं ताल छनकते हो
जब फागुन रंग झमकते हो.. जब फागुन रंग झमकते हो...

मुलाल गुलाबी आँखें हो
और हाथों में पिचकारी हो.....
उस रंग भरी पिचकारी को
अंगिया पर तककर मारीं हो
सीनों से रंग ढलकते हो
तब देख बहारें होली की..   
जब फागुन रंग झमकते हो.. जब फागुन रंग झमकते हो...


-नजीर अकबराबादी

छाप तिलक सब छिनी रे  मोसे नैना मिलायके
प्रेम भटी का मधवा पिलायके मतवारी करे
मोसे नैना मिलायके
बल बल जाऊ मैं तोरे रंग रिजवा अपनी सी रंग दीनी रे
छाप तिलक सब छिनी रे  मोसे नैना मिलायके
खुसरो निजाम बल बल जाइये मोहे सुहागन की भीनी रे
मोसे नैना मिलायके
छाप तिलक सब छिनी रे  मोसे नैना मिलायके

Sunday, November 15, 2009

गालिब

यह न थी हमारी किस्मत, के विसाल- ए- यार होता
अगर और जीते रहते, तो यही इंतज़ार होता

तेरे वादे पर जीये हम, तो यह जान झूट जाना
के ख़ुशी से मर न जाते, अगर एतबार होता

तेरी नाज़ुकी से जाना, के बंधा था इहेद बड़ा
कभी तू न तोड़ सकता, अगर ऊस्तुवार होता

कोइ मेरे दिल से पूछे, तेरे तीर- ए- नीमकश को
ये खलिश कहाँ से होती, जो जिगर के पार होता

ये कहाँ की दोस्ती है, के बने हैं दोस्त नासेह
कोइ चारासाज़ होता, कोइ ग़मगुसार होता

रग- ए- संग से टपकता, वो लहू कई फिर न थमता
जिसे ग़म समझ रहे हो, ये अगर शरारह होता

ग़म अगरचेह जान गुलिस है, पर कहाँ बचाएँ के दिल है
ग़म- ए- इश्क गर न होता, ग़म- ए- रोज़गार होता

कहूँ किस से मैं के क्या है, शब् -ए -ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना, अगर एक बार होता

हुए मर के हम जो रुसवा, हुए क्यों न गर्क- ए- दरिया
न कभी जनाजा उठता, न कहीं मजार होता

उसे कौन देख सकता, के यगाना है वो यकता
जो दूई की बू भी होती, तो कहीं दो चार होता

ये मसाल- ए- तसव्वुफ़, ये तेरा बयान 'गालिब '
तुझे हम वली समझते, जो न बादा ख्वार होता

मेरे हमनफस मेरे हम नवाँ


 मेरे हमनफस मेरे हम नवाँ मुझे दोस्त बनके दगा न दे
मैं हूँ दर्द-ए-इश्क से जान वलब, मुझे जिंदगी की दुआ न दे


मेरे दाग-ए-दिल से है रोशनी, उसी रोशनी से है जिंदगी
मुझे डर है अए चारागर, ये चराग तू ही बुझा न दे


कभी जाम लब पे लगा दिया कभी मुस्कुराके हटा दिया
तेरे छेड़-छाड़ में साथिया, मेरी तशनगी को बढ़ा न दे



मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर, तेरा क्या भरोसा है चारागर
ये तेरी नवाजिश-ए-मुख्तसर, मेरा दर्द और बढ़ा न दे


मेरा अज़्म इतना बलंद है के पराये शोलों का डर नहीं
मुझे खौफ आतिशे गुल से है, ये कहीं चमन को जला न दे


वो उठे हैं लेके होम-ओ-सुब्बू, अरे ओ 'शकील'  कहाँ है तू
तेरा जाम लेने को बज्म में कोई और हाथ बढ़ा न दे




-'शकील'

Wednesday, November 4, 2009

साहिर होशियारपुरी

कौन  कहता  है  मोहब्बत  की  ज़ुबाँ  होती  है ..
यह  हकीकत  तो  निगाहों  से  बयाँ  होती  है

वो  न  आये  तो  सताती  है  खलिश  सी  दिल  को ..
वो  जो  आये  तो  खलिश  और  जवाँ होती  है

रूह  को  शाद  करे  दिल  को  जो  पुरनूर  करे ..
हर  नज़ारे  में  ये  तनवीर  कहा  होती  है

जब्त -ए -सहरापे  मोहब्बत  को  कहा  तक  रोके ..
दिल  में  जो  बात  हो  आँखों  से  अयाँ  होती  है

ज़िन्दगी  एक  सुलगती  सी  चिता  है  साहिर ..
शोला  बनती  है  ना  ये  बुझके  धुवाँ  होती  है

कौन  कहता  है  मोहब्बत  की  ज़ुबाँ  होती  है ..
यह  हकीकत  तो  निगाहों  से  बयाँ  होती  है

- साहिर होशियारपुरी



मराठी रुपांतर


कोण बोलत आहे की प्रेमाचं बोलण शक्य होत आहे 
ही सत्यता तर नजरेच्या प्रत्यंतरात शक्य होत आहे

ते नाही आले तर छळत असते सल हृदयाला
ते जर आले तर सलाला अजून चिरतारुण्य शक्य होत आहे

आत्माला प्रसन्नित करेन हृदयाला जो तेजोमय करेन 
प्रत्येक दृश्यात अशी प्रकाशमानता कुठे शक्य होत आहे

शुष्क-सहनशीलतेत प्रेमाला कुठवर थोपवावे
हृदयामध्ये जी गोष्ट असते डोळ्यांतून शक्य होत आहे

जीवन एक धुमसणारी चिता आहे 'साहीर'
आग बनत आहे न हे विझून धूर शक्य होत आहे

-साहिर होशियारपुरी