Tuesday, January 3, 2012

वोह तो न मिल सकें..

वोह तो न मिल सकें हमें रुसवाइयाँ मिली
लेकिन हमारे इश्क को रानाइयां मिली


आँखों में उनकी डूब के देखा है बारहां
जिनकी थी आरजू न वो गहराइयाँ मिली


आइना रख के सामने आवाज दी उसे
उसके बगर जब मुझे तन्हाईयाँ मिली


आए थे वो नजर मुझे फूलों के आसपास
देखा करीब जाके तो परछाइयाँ मिली


पूछा जो दिल की मैंने तबाही का माजरा
हसकर जवाब दे मुझे अंगड़ाइयां मिली


नासिर दिल-ऐ-तबाह न उनको दिखा सदा
मिलने को बारहां उसे तन्हाईयाँ मिली


                            - नासिर

Sunday, January 1, 2012

ज़िन्दगी यूँ थी के..

ज़िन्दगी यूँ थी के जीने का बहाना तू था
हम फ़क़त ज़ेब-ए-हिकायत थे, फ़साना तू था


हम ने जिस जिस को भी चाहा तेरे हिज्राँ में, वो लोग 
आते जाते हुए मौसम थे, ज़माना तू था


अब के कुछ दिल ही ना माना के पलट कर आते
वरना हम दर-ब-दरों का तो ठिकाना तू था


यार-ओ-अगयार के हाथों में कमानें थें फ़राज़
और सब देख रहे थे के निशाना तू था


अहमद  फ़राज़

Tuesday, December 27, 2011

आपको..

आपको  भूल  जाए  हम  इतने  तो  बेवफ़ा  नहीं
आपसे  क्या  गिला  करे  आपसे  कुछ  गिला  नहीं

शीशा -ए -दिल  को  तोड़ना  उनका  तो  एक  खेल  है
हमसे  ही  भूल  हो  गयी  उनकी  कोई  ख़ता  नहीं

काश  वो  अपने  ग़म  मुझे  दे  दे  तो  कुछ  सुकूँ  मिले
वो  कितना  बदनसीब  है  ग़म  भी  जिसे  मिला  नहीं

जुर्म  है  गर -वफ़ा  तो  क्या  क्यों  मैं  वफ़ा  को  छोड़  दू
कहते  हैं  इस  गुनाह  की  होती  कोई  सज़ा  नहीं

Monday, December 26, 2011

हस्ती अपनी..

हस्ती अपनी हबाब की सी है
यह नुमाइश सराब की सी है

नाज़ुकी उसके लब की क्या कहिये
पंखड़ी इक गुलाब की सी है

मैं जो बोला कहा की यह आवाज़
उसी ख़ाना ख़राब की सी है

बार बार उसके दर पे जाता हूँ
हालत अब इज़तिराब की सी है

मीर उन नीम बाज़ आंखों में
सारी मस्ती शराब की सी है

- मीर तक़ी मीर

Monday, November 28, 2011

आँखों में जल रहा है..

आँखों में जल रहा है क्यूँ बुझता नहीं धुआँ
उठता तो है घटा सा बरसता नहीं धुआँ

चूल्हें नहीं जलाये या बस्ती ही जल गई
कुछ रोज़ हो गये हैं अब उठता नहीं धुआँ

आँखों के पोछने से लगा आँच का पता
यूँ चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुआँ

आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं 
मेहमान ये घर में आयें तो चुभता नहीं धुआँ

- गुलज़ार
 

जगजीत सिंग

जिंदगी यूँ हुई बसर तनहा
काफिला साथ और सफ़र तनहा

अपने साये से चौंक जाते है
उम्र गुजरी है इस कदर तनहा

रात भर बोलते है सन्नाटे
रात कांटे कोई किधर तनहा

दिन गुजरता नहीं है लोगो में
रात होती नहीं बसर तनहा

हम ने दरवाज़े तक तो देखा था 
फिर न जाने गए किधर तनहा

- गुलज़ार

अब और..

अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाये हम
ये भी बहोत है तुझको अगर भूल जाये हम

इस जिंदगी में इतनी फ़रागत किसे नसीब
इतना ना याद आ के तुझे भूल जाये हम

तू इतनी दिलज़दा तो न थी ए शब्-ए-फिराक
आ तेरे रास्ते में सितारे लुटाये हम

वो लोग अब कहाँ है जो कहते थे कल फराज
ये ए खुदा ना कर तुझको भी रुलाये हम

- अहमद फ़राज़

Friday, October 14, 2011

यह आलम...

यह आलम शौक का देखा ना जाए
वोह बुत है या खुदा देखा ना जाए

यह किन नज़रों से तुमने आज देखा
के तेरा देखना देखा ना जाए

हमेशा के लिए मुझसे बिछड़ जा
यह मंज़र बारहां देखा न जाए 

गलत है जो सुना पर आजमा कर
तुझे ऐ बावफा देखा ना जाए

यह महरूमी नहीं पास-ऐ-वफ़ा है
कोई तेरे सिवा देखा ना जाए

फ़राज़ अपने सिवा है कौन तेरा
तुझे तुझसे जुदा देखा ना जाये

- अहमद फ़राज़

वो  कोई  और  न  था  चंद  खुश्क  पत्ते  थे
शज़र  से  टूट  के  जो  फ़स्ल-ए-गुल  पे  रोए  थे

अभी  अभी  तुम्हें  सोचा  तो  कुछ  न  याद  आया
अभी  अभी  तो  हम  एक -दुसरे  से  बिछड़े   थे

तुम्हारे  बाद  चमन  पर  जब  इक  नज़र  डाली
कलि  कलि  में  खिज़ां  के  चिराग  जलते  थे

तमाम  उम्र  वफ़ा  के  गुनाहगार  रहे
ये  और  बात  की  हम  आदमी  तो  अच्छे  थे

शब् -ए -खामोश  को  तनहाई  ने  ज़बान  दे  दी
पहाड़  गूंजते  थे  दश्त  सनसनाते  थे 

वो  एक  बार  मरे  जिन  को  था  हयात  से  प्यार
जो  ज़िन्दगी  से  गुरेज़ाँ  थे  रोज़  मरते  थे 

नए  ख्याल  अब  आते  हैं  ढल  के  ज़हन  मैं
हमारे  दिल  मैं  कभी  खेत  लहलहाते  थे 

ये  इरतिका  का  चलन  है  के  हर  ज़माने  में
पुराने  लोग  नए  आदमी  से  डरते  थे 

नदीम  जो  भी  मुलाक़ात  थी  अधूरी  थी
के  एक  चेहरे  के  पीछे  हज़ार  चेहरे  थे

Thursday, September 22, 2011

ले चला..

ले चला जान मेरी रूठ के जाना तेरा
ऐसे आने से बेहतर था न आना तेरा

तू जो ऐ जुल्फ परेशान रहा करती है
किसके उजड़े हुए दिल में ठिकाना तेरा

आरजू ही न रहीं सुबह ऐ वतन की मुझको
शाम ऐ ग़ुरबत है अजब वक़्त सुहाना तेरा

अपनी आँखों में अभी कौंध गयी बिजली सी
हम न समझे के यह आना है के जाना तेरा

- दाग देहलवी

Sunday, September 11, 2011

मुद्दतों हम पे गम उठाये हैं 
तब कहीं जाके मुस्कराए हैं
एक निगाह-ए-खुलूस के खातिर 
जिंदगी भर फरेब खाए हैं

मुझे फिर वही याद आने लगे है
जिन्हें भूलने में ज़माने लगे है

सुना है हमें वो बुलाने लगे है
तो क्या हम उन्हें याद आने लगे है

यह कहना है उनसे मोहब्बत है मुझको
यह कहने में उनसे ज़माने लगे है

क़यामत यक़ीनन करीब आ गयी है
खुमार अब तो मस्जिद में जाने लगे है

Thursday, September 8, 2011

राज़ की बातें

राज़ की बातें लिखी और ख़त खुला रहने दिया
जाने क्यूँ रुसवाईओं का सिलसिला रहने दिया

उम्र भर मेरे साथ रहकर वो ना समजा दिल की बात
दो दिलों के दरमियाँ इक फ़ासला रहने दिया

अपनी फ़ितरत बदल पाया न इसके बावजूद
खत्म की रंजिश मगर फिर भी गिला रहने दिया

मैं समज़ता था ख़ुशी देगी मुझे सबीर-ए-फरेब
इसलिए मैं ने ग़मों से राबिता रहने दिया


- सबीर जलालाबादी

Tuesday, September 6, 2011

हिज्र की रात का अंजाम तो प्यारा निकला..
वो ही सूरज के जो डूबा था दोबारा निकला..

वक़्त ने जब भी मेरे हाथ से मिस्हल छिनी
ज़हन में तेरे तसव्वुर का सितारा निकला..

मैं तेरे क़ुर्ब से डरता हूँ के तू जिन्दा रहें
मैं समन्दर में जब उतरा तो किनारा निकला..

तू के था बज़्म में तस्वीर कहाँ भेजी थी 
मेरी तन्हाई में क्यूँ अंजुमन आरा निकला..

जुल्मते शब ने किया जिनका तसव्वुर मुमकिन
यह अँधेरा तो उजाले का सहारा निकला..


Monday, August 15, 2011

शहजाद

गुल  खिले  चाँद  रात  याद  आई 
आपकी  बात  बात  याद  आई

एक  कहानी  की  हो  गयी  तकमील 
एक  सावन  की  रात  याद  आई

अश्क  आँखों  में  फिर  उमड़  आये 
कोई  माज़ी  की  बात  याद  आई

उनकी  महफ़िल  से  लौट  कर  'शहजाद'
रौनक -ए -कायनात  याद  आई

Friday, August 12, 2011

गम-ए-इंतजार में इंतजार क्या करूँ
ये वस्ल-ए-रात में इकरार क्या करूँ

कोशिश की राहों में बसाया घर मैं ने
आ के पास तेरे मैं इज़हार क्या करूँ


Wednesday, August 10, 2011

कोई..

ये जो है हुक़्म मेरे पास न आए कोई
इसलिए रूठ रहे हैं कि मनाए कोई

ये न पूछो कि ग़मे-हिज्र में कैसी गुज़री
दिल दिखाने का हो तो दिखाए कोई

हो चुका ऐश का जलसा तो मुझे ख़त पहुँचा
आपकी तरह से मेहमान बुलाए कोई

तर्के-बेदाद की तुम दाद न पाओ मुझसे
करके एहसान न एहसान जताए कोई

क्यों वो मय-दाख़िल-ए-दावत ही नहीं ऐ वाइज़
मेहरबानी से बुलाकर जो पिलाए कोई

सर्द मेहरी से ज़माने के हुआ है दिल सर्द
रखकर इस चीज़ को क्या आग लगाए कोई

आप ने दाग़ को मुँह भी न लगाया अफ़सोस
उसको रखता था कलेजे से लगाए कोई


- दाग देहलवी

Monday, August 8, 2011

चला गया ...

दयार-ए-दिल की रात में चराग सा जला गया 
मिला नहीं तो किया हुआ वो शक्ल तो दिखा गया

जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िन्दगी ने भर दिया
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया

यह सुबहओं की सफेदिया यह दोपहर की जर्दिया
अब आईने में देखता हूँ में कहाँ चला गया  

वो दोस्ती तो खैर अब नसीब-ए-दुश्मन हुई
वो छोटी छोटी रंजिशों का लुत्फ़ भी चला गया 

यह किस खुशी की रीत पर ग़मों को नींद आ गई
वोह लहर किस तरफ गई यह में कहाँ समां गया

Wednesday, July 27, 2011

गुलों में रंग भरे, बादे-नौबहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले

क़फ़स उदास है यारो, सबा से कुछ तो कहो
कहीं तो बहरे-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले

कभी तो सुब्ह तेरे कुंजे-लब से हो आग़ाज़
कभी तो शब सरे-काकुल से मुश्के-बार चले

बड़ा है दर्द का रिश्ता, ये दिल ग़रीब सही
तुम्हारे नाम पे आयेंगे ग़मगुसार चले

जो हम पे गुज़री सो गुज़री मगर शबे-हिज्राँ
हमारे अश्क तेरी आक़बत सँवार चले

हुज़ूरे-ए-यार हुई दफ़्तरे-जुनूँ की तलब
गिरह में लेके गरेबाँ का तार तार चले

मक़ाम 'फैज़' कोई राह में जचा ही नहीं
जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले 



- फैज़

Tuesday, July 5, 2011

मोहसीन नक़वी

इतनी मुद्दत बाद मिले हो
किन सोचोमें गुम रहते हो

तेज हवा ने मुझसे पूछा
रेत पे क्या लिखते रहते हो


कौन सी बात है तुम में ऐसी
इतने अच्छे क्यूँ लगते हो

हमसे ना पूछो हिज्र के किस्से
अपनी कहो अब तुम कैसे हो

- मोहसीन नक़वी

Wednesday, June 22, 2011

आखिर कब तक..

झूटी सच्ची आस पे जीना कब तक आखिर..
आखिर कब तक..
मय की जगह खून-ए-दिल पीना कब तक आखिर..
आखिर कब तक..

सोचा है अब पार उतरेंगे या टकरा कर डूब मरेंगे..
तूफानों की जद पे सफिना कब तक आखिर..
आखिर कब तक..

एक महीने के वादे पर साल गुजरा फिर भी ना आये..
वादे का ये एक महिना कब तक आखिर..
आखिर कब तक..

सामने दुनिया भर के गम है और इधर इक तनहा हम है..
सैकड़ों पत्थर इक आइना कब तक आखिर..
आखिर कब तक..

Sunday, May 29, 2011

सांवरे तोरे बिन जिया जाए ना..
  सांवरे तोरे बिन जिया जाए ना.. जलूं तेरे प्यार में करूँ इंतज़ार तेरा.. किसी से कहाँ जाए ना... 
  याद तिहारी मोरा मन तडपाए सारी रैना नींद ना आए..
  बिरहाकी मारी देखूं राह निहारें दो नैनों के दीप जलाए..जलूं तेरे प्यार में करूँ इंतज़ार तेरा.. किसी से कहाँ जाए ना... 
  सांवरे तोरे बिन जिया जाए ना..
  डूब चलें मेरी आस के तारें कैसे पहुचूँ पी के द्वारें टूट गएँ सब संग सहारें डोले नैयाँ दूर किनारें..जलूं तेरे प्यार में करूँ इंतज़ार तेरा.. किसी से कहाँ जाए ना... 
  सांवरे तोरे बिन जिया जाए ना..

Wednesday, May 11, 2011

जलवा ब कद्र ए ज़र्फ़ ए नज़र देखते रहे
क्या देखते हम उनको मगर देखते रहे

अपना ही अक्स पेश ए नज़र देखते रहे
आइना रु ब रु था जिधर देखते रहे

उनकी हरीम ए नाज़ कहाँ और हम कहाँ
नक्श ओ निगार ए पर्दा ए दर देखते रहे

ऐसी भी कुछ फ़िराक की रातें गुज़र गयीं
जैसे उन्ही को पेश ए नज़र देखते रहे

हर लहजा शान ए हुस्न बदलती रही जिगर
हर आन हम जहाँ ए दीगर देखते रहे

Thursday, April 28, 2011

जिंदगी से...

जिंदगी से यही गिला है मुझे
तू बहोत देर से मिला है मुझे

हमसफ़र चाहिए हुजूम नहीं
एक मुसाफिर भी काफ़िला है मुझे

दिल धडकता नहीं सुलगता है
वो जो ख्वाइश थी आबला है मुझे

लब कुषा हूँ तो इस यकीन के साथ
क़त्ल होने का हौसला है मुझे

कौन जाने के चाहतो में 'फ़राज़'
क्या गवायाँ क्या मिला है मुझे

- अहमद फ़राज़

Tuesday, April 26, 2011

नजर मिला के मेरे पास आ के लूट लिया
नजर हटी थी के फिर मुस्कुरा के लूट लिया

दुहाई है मेरे अलाह की दुहाई है 
किसी ने मुझ से मुझी को छुपा के लूट लिया

सलाम उस पे के जिस ने उठा के पर्दा-ए-दिल
मुझी में रह के मुझी में समां के लूट लिया

यहाँ तो खुद तेरी हस्ती है इश्क को दरकार
वो और होंगे जिन्हें मुस्कुरा के लूट लिया

निगाह डाल दी जिस पर हसीं आँखों ने
उसे भी हुस्न-ए-मुजस्सम बना के लूट लिया
  

- जिगर मुरादाबादी

Thursday, April 21, 2011

फिर....

फिर  उसी  राह  गुज़र  कर  शायद
हम  कभी  मिल  सकें  मगर  शायद

जान  पहचान  से  क्या  होगा
फिर  भी  ऐ  दोस्त  गौर  कर  शायद

मुन्तजिर  जिनके  हम  रहे  उनको
मिल  गए  और  हम  सफ़र  शायद

जो  भी  बिछड़े  हैं  कब  मिले  हैं  'फ़राज़'
फिर  भी  तू  इंतज़ार  कर  शायद

- अहमद  फ़राज़

Tuesday, April 19, 2011

यार आए न आए...

खुदा ही जाने यार आए न आए
मेरे दिल को करार आए न आए

जवानी में अगर तोबा भी कर ले
किसी को इतबार आए न आए

वो आए भी तो अब शिद्दत-ए-दर्द
खुदा जाने करार आए न आ

इबादत तो है पीरी में भी मुमकिन
जवानी बार बार आए न आए

Wednesday, April 6, 2011

तू क्या है

हर एक बात पे कहते हो तुम के 'तू क्या है'
तुम ही कहो के यह अंदाजे-गुफ्तगू क्या है

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख़ जुस्तजू क्या है

न शोलें में यह करिश्मा न बर्क में ये अदा
कोई बताओ के वोह शोखे -तुन्द खू क्या है

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है

रही न ताक़ते-गुफ्तार और अगर हो भी
तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है

वोह चीज़ जिसके लिए हमको हो बहिश्त अज़ीज़
सिवाए बाड़े -गुल फामे-मुश्कबू  क्या  है

यह रश्क है के वो होता है हम सुखन तुमसे
वगरना खौफे-बाद आमोज़ी-ए-अदू क्या है

हुआ है शाह का मुसाहिब फिरे है इतराता
वगरना शहर में 'ग़ालिब' की आबरू क्या है

-ग़ालिब

Sunday, March 20, 2011

नमी सी है..

शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आपकी कमी सी है

दफ्न कर दो हमें के साँस मिले
नब्ज कुछ देर से थमी सी है

वक़्त रहता नहीं कही टिककर
इसकी आदत भी आदमी सी है

कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी
एक तस्वीर लाजमी सी है

Sunday, February 20, 2011

अतहर नफीस

ना उड़ा यूँ ठोकरों से मेरी खाक-ए-कब्र जालिम
यही एक रह गयी है मेरे प्यार की निशानी

तुझे पहली ही कहा था हैं जहाँ सराह-ए-फ़ानी
दिल-ए-बदनसीब तुने मेरी बात ही न मानी

सोचते और जागते साँसों का एक दरिया हूँ मैं
अपने गुमगश्ता किनारों के लिए बहता हूँ मैं


कभी कहाँ ना किसी से तेरे फ़साने को
न जाने कैसे खबर हो गई ज़माने को

सुना है गैर की महफ़िल में तुम न जाओगे
कहो तो आज सजा दूँ गरीब खाने को

जल गया सारा बदन इन मौसमों की आग में
एक मौसम रूह का हैं जिसमें अब ज़िंदा हूँ मैं

मेरे होंठो का तबस्सुम दे गया धोखा तुझे
तुने मुझको बाग जाना देख ले सेहरा हूँ मैं

देखिए मेरी पजीराई को अब आता है कौन
लम्हा भर को वक़्त की दहलीज़ पर आया हूँ मैं


इसका रोना नहीं क्यूँ तुम ने किया दिल बरबाद
इस का गम है के बहोत देर में बरबाद किया

मुझ को तो होश नहीं तुमको खबर हो शायद
लोग कहते के तुम ने मुझे बरबाद किया 

- अतहर नफीस

Wednesday, January 26, 2011

दिल से दुआ मुझे दे के तो देखो
आज आंसू मेरे गिरा के तो देखो

मेरी परछाई मेरे गम की स्याही
इस अँधेरे को उतार के तो देखो

मस्ती भरे पल मेरे साथ साथ
आज कुछ देर साथ आ के तो देखो

बड़ी बेदर्दी से पला है मुझ में
उस दिल की बात सुन के तो देखो

Saturday, January 15, 2011

वो अजीब शख्स था....

वो  अजीब  शख्स  था  भीड़  मैं  जो  नज़र  मैं  ऐसे  उतर   गया


जिसे  देख  कर  मेरे  होंट  पर  मेरा  अपना  शेर  ठहर  गया


कई  शेर  उस  की  निगाह  से  मेरे  रुख  पे  आ  के  ग़ज़ल  बने


वो  निराला  तर्ज़ -ए -पयाम था  जो  सुखन  की  हद  से  गुज़र  गया

वो  हर  एक  लफ्ज़  मैं  चाँद  था  वो  हर  एक  हर्फ़  मैं  नूर  था 


वो  चमकते  मिसरों   का  अक्स  था  जो  ग़ज़ल  में  खुद  ही  संवर  गया


जो  लिखूं  तो  नोक -ए -कलम   पे  वो  , जो  पढ़ूं  तो  नोक -ए -जुबां  पे  वो

मेरा  जौक  भी  मेरा  शौक   भी  मेरे  साथ  साथ  निखर  गया





Thursday, January 6, 2011

फैसला तुमको भूल जाने का
एक नया ख्वाब है दीवाने का

दिल कली का लरज लरज उठा
जिक्र था फिर बहार आने का

हौसला कम किसी में होता है
जीत कर खुद ही हार जाने का

जिंदगी कट गई मनाते हुए
अब इरादा है रूठ जाने का

आप शहजाद की ना फिक्र करें
वो तो आदि है जख्म खाने का

- शहजाद

Saturday, January 1, 2011

सावन बीतो जाये पिहरवा ...
सावन बीतो जाये पिहरवा ...
मन मेरा घबराए..
ऐसो गए परदेस पिया तुम..
ऐसो गए परदेस पिया तुम.. चैन हमें नहीं आये..
मोरा सैयां मोसे बोले ना..
मोरा सैयां मोसे बोले ना..मैं लाख जतन कर हारी
मैं लाख जतन कर हार रहीं

मोरा सैयां मोसे बोले ना..मोरा सैयां मोसे बोले ना..
तू जो नहीं तो ऐसे पिया हम..
तू जो नहीं तो ऐसे पिया हम...जैसे सुना आंगना
जैसे सुना आंगना.. नैन तिहारी राह निहारें..
नैन तिहारी राह निहारें.. नैन को तरसयों ना

मोरा सैयां मोसे बोले ना..
मोरा सैयां मोसे बोले ना..मैं लाख जतन कर हारी
मैं लाख जतन कर हार रहीं

मोरा सैयां मोसे बोले ना..मोरा सैयां मोसे बोले ना..

Monday, December 6, 2010

दिल की बात लबों पर ला कर अब तक हम दुःख सहते है
हम ने सुना था इस बस्ती में दिलवाले भी रहते है

एक हमे आवारा कहना कोई बड़ा इल्जाम नहीं
दुनिया वाले दिलवालों को और बहोत कुछ कहते है

बीत गया सावन का महिना मौसम ने नजरे बदले
लेकिन इन प्यासी आँखों से अब तक आंसू बहते है

जिन की खातिर शहर भी छोड़ा, जिन के लिए बदनाम हुए
आज वो भी हम से बेगाने बेगाने से रहते है

वो जो अभी इस राहगुजर से चाक ए गिरेबाँ गुजरा था
उस आवारा दीवाने को जालिब जालिब कहते है


-जालिब

Saturday, November 27, 2010

जब से तु ने मुझे दीवाना बना रखा है..

आप गैरोंकी बात करते है..
हमने अपने भी आजमाए है
लोग काँटों से बच के चलते है
हमने फूलों से जख्म खाए है

किस का क्या जो कदमों पर जब इन्हें बंदगी रख दी
हमारी चीज़ थी हमने जानी वहा रख दी
जो दिल माँगा तो वो बोले के ठहरो याद करने दो 
जरा सी चीज़ थी हमने खुदा जाने कहा रख दी

संग हर शख्श ने उठाया रखा है
जब से तु ने मुझे दीवाना बना रखा है

निगाह नाज़ से पूछेंगे किस दिन यह जहीन ...तू ने क्या क्या न बनाया तो ये क्या क्या न बना

उसके दिल पर भी कड़ी इश्क में गुजरी होगी
नाम जिसने भी मुहब्बत का सजा रखा है

आ पिया मोरे नैन में...मैं पलक ढाँक तोहे लूँ... ना मैं देखूं और को और न तोहे देखन दूँ

पत्थरों.. आज मेरे सर पे बरसते क्यूँ हो
दुनिया बड़ी बावरी पत्थर पूजने जाये..घरकी चक्की कोई न पूजे जिसका पिसा खाए
मैंने तुमको भी कभी अपना खुदा रखा है

अब मेरे दीद की दुनिया भी तमाशाई है
तुने क्या मुझके मुहब्बत में बना रखा है

नदी किनारे धुँआ उठे मैं जानू कुछ होय..जिस कारन मैं जोगन बनी कही वो ही न जलता होय..
पि जा अय्याम की कल्बी को भी हसके नासीर
हम को सहने में भी कुदरत ने मजा रखा है
 
जब से तु ने मुझे दीवाना बना रखा है............

Thursday, November 11, 2010

वह सूरतें इलाही किस देस बस्तियाँ है..
अब जिनके देखनेको आँखे तरस्तियाँ है..

बरसात का तो मौसम कब का निकल गया पर
मिजगां की यह घटायें अब तक बरस्तियाँ है..

क्यों कर ना हो यह ज़ख्मी शीशा सा दिल हमारा
उस शौक की निगाहें पत्थर में धस्तियाँ है..

कीमत में उनकी गो हम दो जुग को दे चुके है..
उस यार की निगाहें किस पर भी सस्तियाँ है..

जब मैं कहा यह उसे सौदा को अपने मिलके..
इस साल तू है साकी और मैं परस्तियाँ है..

Monday, October 4, 2010

वो  जो  हम  में  तुम  में  करार  था , तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो 
वही  यानी  वादा  निबाह  का , तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो 

वो  जो  लुत्फ़  मुझ  पे  थे  पेश्तर , वो  करम  के  हाथ  मेरे  हाल  पर
मुझे  सब  हैं  याद  ज़रा  ज़रा , तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो

वो  नए  गिले  वो  शिकायतें , वो  मज़े  मज़े  की  हिकायतें
वो  हर  एक  बात  पे  रूठना , तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो


कोई  बात  ऎसी  अगर  हुई  जो  तुम्हारे  जी  को  बुरी  लगी
तो  बयां  से  पहले  ही  भूलना  तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो


सुनो  ज़िक्र  है  कई  साल  का , कोई  वादा  मुझ  से  था  आप  का
वो  निबाहने  का  तो  ज़िक्र  क्या , तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो

कभी  हममें  तुम  में  भी  चाह  थी , कभी  हम  से  तुम  से  भी  राह  थी
कभी  हम  भी  तुम  भी  थे  आशना , तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो

हुए  इत्तेफाक  से  गर  बहम , वो  वफ़ा  जताने  को  दम -बा -दम
गिला -ए-मलामत -ए -अर्क़बा , तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो

कभी  बैठे  सब  हैं  जो  रू -ब-रू  तो  इशारतों  ही  से  गुफ्तगू
वो  बयान  शौक़  का  बरमला  तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो

वो  बिगड़ना  वस्ल  की  रात  का , वो  न  मानना  किसी  बात  का
वो  नहीएँ  नहीं  की  हर  आन  अदा , तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो

जिसे  आप  गिनते  थे  आशना  जिसे  आप  कहते  थे  बावफ़ा
मैं  वही  हूँ  "मोमिन "-ए -मुब्तला  तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो

Saturday, September 18, 2010

किसको कातिल मैं कहूँ किसको मसीहा समझूँ..
सब यहाँ दोस्त ही बैठे है किसे क्या समझूँ...


वो भी क्या दिन थे के हर वहम यकीन होता था...
अब हकीक़त नज़र आये तो उसे क्या समझूँ..


दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे..
ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँ..


जुल्म यह है के है यकता तेरी बेगानारवी
लुफ़्त यह है के मैं अब तक तुझे अपना समझूँ...
 
 
 
 Video _ http://www.youtube.com/watch?v=TSJlQWhC-dc&feature=player_embedded#!

Sunday, August 29, 2010

गम का खजाना तेरा भी है.. मेरा भी..

गम का खजाना तेरा भी है.. मेरा भी..
                                     गम का खजाना तेरा भी है.. मेरा भी...
             यह नजराना तेरा भी है और मेरा भी...

अपने गमको गीत बनाकर गा लेना..
अपने गमको गीत बनाकर गा लेना..
राग पुराना तेरा भी है... मेरा भी..
राग पुराना तेरा भी है.. मेरा भी..
गम का खजाना तेरा भी है.. मेरा भी...

                                   तू मुझको और मैं तुझको समझाऊ क्या..
तू मुझको और मैं तुझको समझाऊ क्या..
                                  दिल दीवाना तेरा भी है.. मेरा भी.. 
दिल दीवाना तेरा भी है.. मेरा भी..
              गम का खजाना तेरा भी है.. मेरा भी...

शहर में गलियों-गलियों जिसका चर्चा है..
शहर में गलियों-गलियों जिसका चर्चा है..
वो अफसाना तेरा भी है.. मेरा भी..

                                  मयखाना की बात ना कर वाइज मुझसे..
                                  आना-जाना तेरा भी.. मेरा भी..
                                  गम का खजाना तेरा भी है.. मेरा भी...

यह नजराना तेरा भी है और मेरा भी... 
            गम का खजाना तेरा भी है.. मेरा भी...

Sunday, August 22, 2010

तुझ लब की सिफत, लाल-ऐ-बदक्शासु कहूँगा..
जादू है तेरे नैन, जादू है तेरे नैन गज़लासु कहूँगा..

जलता हूँ शब-ओ-रोज तेरे गम में ऐ साजन..
ऐ सोज तेरा निसाल-ऐ- सोजासु कहूँगा ..

देखा हूँ तुझे ख्वाब में ऐ माया-ऐ-ख़ुबी
इस ख्वाब को जा उसफ-ऐ-तहनासु कहूँगा..

मुझ पर ना करो जुल्म तुम ऐ लैल-ऐ-खूबा
मजनू हूँ तेरे गम को बयाबासु कहूँगा..

एकनुक्ता तेरे सफा-ऐ-रुख पर नहीं बेजां
इस मुख को सफा-ऐ-ख़ुरासु कहूँगा..

http://www.youtube.com/watch?v=OrrjQi0uS0o

Sunday, July 25, 2010

तुम्हें दिललगी भूल जानी पड़ेगी.....मोहब्बत की राहों में आकर तो देखो

तड़पने पे मेरे ना फिर तुम हसोगे.. कभी दिल किसी से लगा कर तो देखो
होठों के पास आये हसीं क्या मजाल है..दिल का मुहमल्ला है कोई दिललगी नहीं
जख्म पे जख्म खा के ज़ी अपने लहू के घुट प़ी.. आह ना कर लबों को स़ी..इश्क है दिललगी नहीं

दिल लगाकर पता चलेगा तुम्हें ...आशकी की दिललगी नहीं होती..

 कुछ खेल नहीं है इश्क की लाग....पानी न समझ है आग है आग
खूँ रुलाएगी यह लगी दिलकी..खेल समझो न दिललगी दिलकी
यह इश्क नहीं आसाँ.. बस इतना समझ लीजिये..इक आग का दरया है..और डूब के जाना है

तुम्हें दिललगी भूल जानी पड़ेगी.....मोहब्बत की राहों में आकर तो देखो
मोहब्बत की राहों में आकर तो देखो..तड़पने पे मेरे ना फिर तुम हसोगे..
तड़पने पे मेरे ना फिर तुम हसोगे..कभी दिल किसी से लगा कर तो देखो

Saturday, July 17, 2010

मेरे दिल में तेरी यादों के साए
हवा जैसे खंडहर में सरसराए

हम ही ने सब के गम को अपना जाना
हम ही ने सब के हाथों जख्म पाए

दिल-ए-बेताब की उस्तअद तो देखो
ज़माने भर के इसमें गम समाए

किसीने प्यार से जब भी पुकारा
तो पलकों पर सितारे झिलमिलाए

शब्-ए-फ़ुर्कत हविक आहट पे मुझको
यही धोखा हुआ शायद वो आए

ख़ुशी दी है ज़माने भर को इमदाद
अगरचे उम्रभर आँसू बहाए


http://www.youtube.com/watch?v=TcDqUQzp0xs&feature

Tuesday, July 6, 2010

..आँधी चली ...

जब तक बिका न था....
जब तक बिका न था.. तो कोई पूछता न था
जब तक बिका न था तो कोई पूछता न था
तुने मुझे खरीद कर... अनमोल कर दिया

आँधी चली तो नक़्शे-कफ़-ए-पा नहीं मिला
आँधी चली तो नक़्शे-कफ़-ए-पा नहीं मिला
दिल जिससे मिल गया वो दुबारा नहीं मिला
आँधी चली तो नक़्शे-कफ़-ए-पा नहीं मिला
दिल जिससे मिल गया वो दुबारा नहीं मिला...आँधी चली तो नक़्शे-कफ़-ए-पा नहीं मिला...............

हम अंजुमन में सब की तरफ देखते रहे
हम अंजुमन में सब की तरफ देखते रहे
हम अंजुमन में सब की तरफ देखते रहे....अपनी तरह से कोई अकेला नहीं मिला
अपनी तरह से कोई अकेला नहीं मिला........

दिल जिससे मिल गया वो दुबारा नहीं मिला...आँधी चली तो नक़्शे-कफ़-ए-पा नहीं मिला...........

जो मैं ऐसा जानती.......
जो मैं ऐसा जानती प्रीत की दुख होय
नगर ढंढोरा पिटती.....
नगर ढंढोरा पिटती प्रीत न करियो कोय

आवाज को तो कौन समझता की दूर दूर
आवाज को तो कौन... समझता की दूर दूर.......
खामोशियों का दर्द शनासा नहीं मिला
................खामोशियों का दर्द शनासा नहीं मिला...

दिल जिससे मिल गया वो दुबारा नहीं मिला...आँधी चली तो नक़्शे-कफ़-ए-पा नहीं मिला.................

कच्चे घड़े ने जीत ली....जीत ली.......
कच्चे ...कच्चे..कच्चे...कच्चे घड़े ने जीत ली
कच्चे घड़े ने जीत ली नदी चढ़ी हुई...
मजबूत कश्तियों को किनारा नहीं मिला..
मजबूत कश्तियों को किनारा नहीं मिला....

दिल जिससे मिल गया वो दुबारा नहीं मिला...आँधी चली तो नक़्शे-कफ़-ए-पा नहीं मिला.............

  ..आँधी चली ...


Source :- http://parulchaandpukhraajkaa.blogspot.com

Sunday, July 4, 2010

नसीर

                                                  तर्के-तअल्लुकात पे रोया ना तू न मैं
                                               लेकिन यह क्या के चैन से सोया ना तू न मैं

वो हमसफ़र था मगर उससे हमनवाई न थी                                             
  के धुप छाँव का आलम रहा जुदाई न थी                                                    


                                                कुछ इस अदा से आज वो पहलूनशीं रहे 
                                                      जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे


अदावतें थी तगाफुल था रंजिशें थी मगर                                                 
बिछड़ने वाले में सब कुछ था बेवफाई न थी                                             



बिछड़ते वक़्त उन आँखों में थी हमारी ग़ज़ल                                           
ग़ज़ल भी वो जो किसी को अभी सुनाई न थी                                             

                                                  काजल दारू किरकिरा सुरमा सहा न जाये 
                                                 जिन नैन में पी बसे दूजा कोन न समाये
किसे पुकार रहा था वो डूबता हुआ दिन                                                      
सदा तो आयी थी लेकिन कोई दुहाई न थी                                                 



  कभी यह हाल के दोनों में यकदिली थी नसीर                                        
कभी यह मर्हल्ला जैसे के आशनाई न थी                                              




- नसीर

Source :- http://parulchaandpukhraajkaa.blogspot.com

Monday, June 21, 2010

कुछ देर तक......

कुछ देर तक...... कुछ दूर तक.......... तो साथ चलो..........
माना जिंदगी है तनहा सफ़र..... इल्तजा यही है जाने जिगर

मुझको फ़िक्र है आगाज़ की..... देखो ना सपना अंजाम का..... सदियों की बेताबियाँ खत्म हो.... इक पल मिले जो आराम का............

रहता नहीं संग कोई सदा...... जाने वफ़ा है मुझको पता ... दो चार लम्हा रहो तुम रूबरू..... दिल तुमसे कहना यही चाहता ......
कुछ देर तक...... कुछ दूर तक.......... तो साथ चलो................
माना जिंदगी है तनहा सफ़र..... इल्तजा यही है जाने जिगर

कुछ देर तक...... कुछ दूर तक.......... तो साथ चलो..........
साथ चलो..........
कुछ देर तक...... कुछ दूर तक.......... तो साथ चलो....

Friday, June 18, 2010

मैं नज़र से पी रहा हूँ, ये समां बदल न जाए
न उठाओ तुम निगाहें, कहीं रात ढल न जाए


अभी रात कुछ है बाकि, न उठा नकाब साकी
तेरा रिंद गिरते गिरते, कहीं फिर संभल न जाए

मेरे जिंदगी के मालिक, मेरे दिल पे हाथ रख दे
तेरे आने के ख़ुशी में, मेरा दम निकल न जाए


मेरे अश्क भी है इस में, जो शराब बन रही है
मेरा जाम छूने वाले, तेरा हाथ जल न जाए

मैं बना करू नशेमन किसी शाख-ए-गुल्सिता पे
कहीं साथ आशियाँ के, ये चमन भी जल न जाए

Wednesday, June 9, 2010

आहट सी कोई आये तो लगता है की तुम हो
साया कोई लहराए तो लगता है की तुम हो

जब शाख कोई हाथ लगाते ही चमन में
शरमाए लजत जाए तो लगता है की तुम हो

रस्ते के धुंधलके में किसी मोड़ पे कुछ दूर..
इक लव सी चमक जाए तो लगता है की तुम हो

संदल से महकती हुई कुर्बेफ़ हवा का
झोंका कोई टकराए तो लगता है की तुम हो

ओढ़े हुए तारों की चमकती हुई चादर
नदिया कोई बलखाये तो लगता है की तुम हो

जब रात कोई देर किरन मेरे बराबर
चुपचाप से सो जाए तो लगता है की तुम हो
 

- जान  निसार  अख्तर


Friday, May 7, 2010

क्या टूटा है.... अन्दर अन्दर, क्यों चेहरा कुम्हलाया है
क्या टूटा है अन्दर अन्दर...क्यों चेहरा कुम्हलाया है
क्या टूटा है अन्दर अन्दर, क्यों चेहरा कुम्हलाया है
तनहा तनहा रोने वालो, कौन तुम्हे याद आया है...........
क्या टूटा है अन्दर अन्दर...क्यों चेहरा कुम्हलाया है
चुपके चुपके सुलगे रहे थे, याद में उनकी दीवाने..
एकतारे में टूट के यारो......
एकतारे में टूट के यारो....क्या उनके समझाया है
क्या टूटा है अन्दर अन्दर...क्यों चेहरा कुम्हलाया है

रंगबरंगी इस महफ़िल में...
रंगबरंगी इस महफ़िल में, तुम क्यों इतने चुपचुप हो
भूल भी जाओ पागल लोगो....
भूल भी जाओ पागल लोगो.... क्या खोया क्या पाया है.....
क्या टूटा है अन्दर अन्दर...क्यों चेहरा कुम्हलाया है

शेर कहा है खून है दिल का ....
शेर कहा है खून है दिल का, जो लफ्जों में बिखरा है
शेर कहा है खून है दिल का......जो लफ्जों में बिखरा है..
दिल के जख्म दिखा कर हमने
दिल के जख्म दिखा कर हमने..महफ़िल को गरमाया है..............
क्या टूटा है अन्दर अन्दर...क्यों चेहरा कुम्हलाया है

अब 'शहजाद' ये झूट ना बोलो
अब 'शहजाद' ये झूट ना बोलो... वो इतना बेदर्द नहीं
अब 'शहजाद' ये झूट ना बोलो, वो इतना बेदर्द नहीं
अपनी चाहत को भी परखो..
अपनी चाहत को भी परखो, गर इम्जाम लगाया है
क्या टूटा है अन्दर अन्दर...क्यों चेहरा कुम्हलाया है
तनहा तनहा रोने वालो ....
 तनहा तनहा रोने वालो, कौन तुम्हे याद आया है...
क्या टूटा है अन्दर अन्दर...क्यों चेहरा कुम्हलाया है


- शहजाद

Sunday, April 18, 2010

फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया
दिल जिगर तशना-ए-फ़रियाद आया

दम लिया था न क़यामत ने हनोज
फिर तेरा वक़्त-ए-सफ़र याद आया

जिंदगी यूँ भी गुजर ही जाती
क्यों तेरा राहगुजर याद आया

कोई वीरानी सी वीरानी है
दश्त को देख के घर याद आया

हमने मजनू पे लड़कपन में असद
संग उठाया था के सर याद आया

- 'असद' ग़ालिब