Monday, December 28, 2009

बात करनी मुझे मुश्किल

बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
जैसे अब है तेरी महफ़िल, कभी ऐसी तो न थी

ले गया छीन के कौन आज तेरा सब्रो-करार
बेकरारी तुझे ऐ दिल, कभी ऐसी तो न थी

उनकी आँखों ने खुदा जाने किया क्या जादू
के तबीअत मेरी माइल, कभी ऐसी
तो न थी

चश्मे-कातिल मेरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन
जैसे अब हो गई कातिल, कभी ऐसी
तो न थी

क्या सबब तू जो बिगड़ता है 'ज़फर' से हर बार
ख़ु तेरी हुरश्माइल, कभी ऐसी
तो न थी

- बहादुरशाह ज़फर




2 comments:

  1. बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
    जैसे अब है तेरी महफ़िल, कभी ऐसी तो न थी

    vah mastach aahe re

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  2. धन्यवाद विक्रम

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