यूँ सजा चाँद के छलका तेरे अंदाज का रंग
यूँ फिज़ा महकी के बदला मेरे हमराज का रंग
साया-ए-चश्म में हैरां रुख-ए-रोशन का जमाल
सुर्खि-ए-लब में परीशां तेरी आवाज का रंग
बे पिए हूँ के अगर लुत्फ़ करो आखिर-ए-शब
शीशा-ओ-मय में ढलें सुबह के आगाज का रंग
चंग-ओ-नै, रंग पे थे अपने लहू के दम से
दिल ने लय बदली तो मद्धम हुआ हर साज का रंग
- फैज़ अहमद फैज़
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