Monday, December 21, 2009

खामोश हो क्यों


खामोश हो क्यूँ दाद-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते
बिस्मिल हो तो कातिल को दुआ क्यूँ नहीं देते

वहशत का सबब रौजने-ज़िंदा तो नहीं है
मेहरो-महो-अंजुम को बुझा क्यूँ नहीं देते

एक यह भी तो अंदाजे-इलाजे-गमे-जाँ है
ये चारागरो दर्द बढ़ा क्यूँ नहीं देते

रहजन हो हाजिर है मताए-दिलो-जाँ भी
रहबर हो तो मंजिल का पता क्यूँ नहीं देते

मुंसिफ हो अगर तुम तो कब इंसाफ़ करोगे
मुजरिम हैं अगर हम तो सज़ा क्यूँ नहीं देते

साये हैं अगर हम तो हो क्यों हमसे गुरेजाँ
दीवार अगर हैं तो गिरा क्यूँ नहीं देते

क्या बीत गयी अबके 'फ़राज़' अहले चमन पर
याद आने का कफस मुझको सदा क्यूँ नहीं देते

- अहमद फ़राज़

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