ए मोहबत तेरे अंज़ाम पे रोना आया
जाने क्यूँ आज तेरे नाम पे रोना आया
यूँ तो हर शाम उमीदों पे गुजर जाती थी
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया
कभी तक़दीर का मातम, कभी दुनिया का गिला
मंज़िल-ए-इश्क में हर गाम पे रोना आया
मुझपे ही ख़त्म हुआ सिलसिला-ए-नौहागरी
इस कदर गर्दिश-ए-अय्याम पे रोना आया
जब हुआ जिक्र ज़माने में मोहबत का 'शकील'
मुझको अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया
-शकील
आपसे मिलकर हमे रोना था बहुत रोना था
ReplyDeleteतंगी-ये-वक्ते मुलाकात ने रोने न दिया ।
आप कहते थे की रोने से न बदलेंगे नसीब
उम्रभर आपकी इस बात ने रोने ना दिया ।
रोनेवालो से कहदो उनका भी रोना रो ले ऐ "फाकीर "
ReplyDeleteजिनको मजबुरी-ए- हालात ने रोने न दिया ।
दिल तो रोता रहे और आखोंसे आसु न बहे
ReplyDeleteइश्क के ऐसी रवयात ने दिल तोड दिया
किसी के आखं के आसु है ये इसे सितारे न कहो
ReplyDeleteकिंवा
अश्क बहते रहे खामोशसे यहा रातोमे
और तेरी रेशमी आचल का किनारा न मिला